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समंदर पी गए लेकिन अभी शबनम के प्यासे हैं

बात तो उसके गुनाहों की थी

रूह से रूह मिलके चलती है परिन्दों की तरह

चंद सिक्कों से कुछ औकात बन गई होती

काले पहियों सी ख्वाहिशें

हर तरफ जब वो नज़र आने लगे

कोई बतलाए क्या ख्वाबों की कीमत

अभी महफिल में कातिल हैं

Mother's डे तो बस एक दिन का कारोबार है.

बड़ा काफ़िर सनम निकला