रूह से रूह मिलके चलती है परिन्दों की तरह


दर्द की तैयारी रही है इस कदर 
बददुआयें भी दुआयें बन गयीं
तेरी रहमत है मेरे परवरदिगार 
नफरतें खुद वफायें बन गयीं
इक बरस बीता है बस तेरे बगैर 
खूबियां सब क्यूँ खतायें बन गयीं
तेरे निज़ाम में रोने की भी मौ‍हलत ना मिली 
गर्दीशें सारी सदायें बन गयीं
बस हुआ ये है तेरे जाने के बाद 
बेकसों की दास्तायें बन गयीं
कलम तेरी, लहू की रोशनाई भी तेरी, अपना हुनर तेरा 
तेरी इस जायज़ाद से काफ़िर अदाएं बन गयीं
रूह से रूह मिलके चलती है परिन्दों की तरह 
किसको परवाह है अगर क़ातिल हवायें बन गयीं.

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