काले पहियों सी ख्वाहिशें
पूछ रही है हालात कैसे हैं
जिन्दगी है क्या कहूँ इसको
काली सड़क सी मांज़िले
काले पहियों सी ख्वाहिशें
बर्फ बन चुके एहसास
लम्हा लम्हा चुभती फांस
तिशनगी मुकद्दर बन बैठी
गर्दीशें एक उम्र से हैं ऐठी
सफर के मज़े उठा रहे हैं
लोग आ रहे हैं जा रहे हैं
कोई दिल को पत्थर से कम नहीं समझता
वरना थोड़ा ही रिश्तों में उलझता
तुम हो कौन किस दुनिया के हो
मलेरिया के हो या चिकेन गुनिया के हो
मरघट में रहते रहो आसानी होगी
शहघर में सारी परेशानी होगी
पूछ रही है जज़्बात कैसे हैं
जिन्दगी है क्या कहूँ 'साहिल' कैसे हैं
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