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Showing posts from August, 2017

समंदर पी गए लेकिन अभी शबनम के प्यासे हैं

बात तो उसके गुनाहों की थी

रूह से रूह मिलके चलती है परिन्दों की तरह

चंद सिक्कों से कुछ औकात बन गई होती

काले पहियों सी ख्वाहिशें

हर तरफ जब वो नज़र आने लगे

कोई बतलाए क्या ख्वाबों की कीमत

अभी महफिल में कातिल हैं

Mother's डे तो बस एक दिन का कारोबार है.

बड़ा काफ़िर सनम निकला

अपने इश्क़ ने कमाल कर दिया

जाने वालों को दुआ देता चल

ऐसी होली दिखा रहा है वो

खुदा है तो मै भी हूँ