बहुत दिल दुखाया है अपना

बहुत दिल दुखाया है अपना
अब और नहीं
इलतिजा फारियाद मौहब्बत
अब और नहीं
अपनी मजबूरियों का तुझको सलाम
अब और नहीं
तेरी गुस्ताखियों का होना गुलाम
अब और नहीं
बेतरतीब मौहब्बत का जनून
अब और नहीं
तेरे सदके में जान देने का फितूर
अब और नहीं
बेपरवाह रहना तिजारतों से यहां
अब और नहीं
जानवरों के सामने इंसान बने रहना
अब और नहीं
अब सब मौत के बाद ही तय हो
अपना लहु कलम से बहाना
अब और नहीं .

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