शिकारी बनोगे या शिकार बनोगे

या शिकारी बनोगे या शिकार बनोगे
या क़त्ल बनोगे या हथ्यार बनोगे
और तो इस जंगल में कोई चारा नहीं है
यहाँ दुसरे को मारे बिना अब गुज़ारा नहीं है
जगह कम है जरूरतें बढती जाती हैं
पेड़ों पर मुश्किलें चढ़ती जाती है
तुम किसी के नीचे आजाओ या कोई तुम्हारे
अपने ही वजन के नीचे पिस रहे हैं सारे
सांप की तरह इन्सान अपने ही बच्चे खाने लगा है
नरभक्षी शुरू हुआ था वहीँ वापस जाने लगा है
जो नरभक्षी नहीं बन पाएंगे
उन्हें दुसरे मिनटों में निपटायेंगे
तय तुम्हे करना है मारना है या मरना है
ये कलयुग से भी आगे का युग है यहाँ रोज़ अपनी कब्र में उतरना है ..
मान लो सब लाशें हैं जिन्दा है
ये कहाँ किसी क़त्ल पे शर्मिंदा हैं
कुछ बातों से क़त्ल कर रहे हैं कुछ हथ्यार से
सब निकलता जा रहा है इन्सान के इख्तियार से ....

Comments

Popular Posts