मुहब्बतें गिनते गिनते थकान हो रही है

मुहब्बतें गिनते गिनते थकान हो रही है
जिंदगी ख्वाहिशों की दुकान हो रही है ..
महर्बानियाँ उसकी होते रहने पे आमादा हैं
और दुनिया खामखाँ परेशान हो रही है
दूसरे के माल पर रखे हुए है सब नज़र
अपनी बेगम खुद से अनजान हो रही है
जिसके मरजी कप में चाय पी आओ जनाब
अपने माशूक की दुनिया मेहमान हो रही है
होश में रहना हो तो हर रोज़ पिया कर
गरीब आदमी है महंगाई महरबान हो रही है ..
तेरे करीब बैठ तो जाऊ कभी कभार
एक आँख है किसी की निगेबान हो रही है
तसल्ली दिल को दो दिमाग को या किसी और को
पर धीरे धीरे जिंदगी शमशान हो रही है ..

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